ऑफिस - ठंड और वो ।
- Abhishek Bhargava
- Jan 29, 2020
- 2 min read
Updated: Mar 14, 2020

ऑफिस की एक लड़की, जिसके आसपास सारा माहौल घूमता है ।
ऑफिस - ठंड और वो । -----लगता है, ठंड आई है।
बाइक पर बैठने वाली ने बीच की दूरियाँ घटाई हैं आज फिर ऑफिस वो, सिर्फ मुँह धो कर आयी है। लगता है, अब जाकर ठंड आयी है।
फिर उसके बदन से एक अजीब से महक आयी है। Deo की ख़ुशबू ने उसकी असलियत छुपाई है अब गर्म कपड़ों के सहारे wo तुन्दू अपनी छुपाती है सौंदर्य की परवाह नहीं, अब खूब दबा कर खाती है।
समय चलता रहा वो भी बढ़ती रही बढ़ते समय के साथ, ये काया कैसी बनाई है। आज फिर ऑफिस वो,सिर्फ मुँह धोकर आयी है। लगता है, अब जाकर ठंड आयी है।
एक दौर ऐसा भी था जब दफ़्तर में, जिसके होने से माहौल ख़ुशनुमा - सा रहता था देख उसे हर खिन्न मन, खिला - खिला सा रहता था। काम की उलझनें जब भी डिप्रेसन लाती थी उसकी दिलकश अदायें, तरावट से मन में लाती थी लटे झूलती माथे पर, जब वो कानों में अटकाती थी ।
लेकिन ना जाने क्या हो गया, अब उस नैन प्यारी को सर्द सुबह में समय नहीं मिलता, शायद उस बेचारी को नींद की कच्ची आज फिर ऑफिस सिर्फ मुँह धोकर आयी है। लगता है, अब जाकर ठंड आयी है।
माहौल बदल रहा था, चेहरों पर उदासी छाई थी तभी, एक हुस्न के कदर दान से पूछा मैंने, तेरी इस उदासीनता ही वजह क्या है कह भी दे, वैसे मुझसे छुपा क्या है । बोला भाई, है तो वही नक्श, और कद काया पर देख नहीं मन हर्षाया एक बात जरा कहो भाया अंतर इतना कैसे आया ।
हमने भी कहा बदला है मौसम, मुश्किल घड़ी आयी है। आज फिर ऑफिस वो,सिर्फ मुँह धोकर आयी है। लगता है, अब जाकर ठंड आयी है।
देख गिरते रुझानों का, उसको भी अहसास हुआ उदास नैनों को नव चेतना देने, एक नया संकल्प लिया। बढ़ती परतों की छटनी करने इस साल फिर उसने Gym लगवाई है । देख चलित उस नैन सुख दायनी को आलसियों में चुस्ती आई है । सेठ - सा पेट रखने वालों ने भी कुछ दिन ही सही जोश - जोश में सुबह - सुबह दौड़ लगाई है ।
एक अनार ने, सौ बीमारों की सेहत बनाई है जिम की मेहनत ने, उसकी रंगत बढ़ाई है Finally, आज वो नहाकर आयी है।
लगता है, अब जाकर ठंड आयी है |
©अभिषेक भार्गव
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