हार से हारे जो योद्धा हम ऐसे रणधीर नहीं । गिर कर ऊठते, फिर आगे बढ़ते मुड़कर करते, हम शोक नहीं ।
भारत की आन - बान - शान देश की सेना को ये कविता समर्पित करता हूँ ।
Intro-1 ना मौत का भय, ना धन का मोह रखते हैं । बटुये के एक कोने में परिवार दिल में हिन्दुतान रखते हैं
हो पर्वतों की सर्द फिज़ाये या हो मरु की गर्म हवायें इश्क़ में वतन के तपते हैं, जलते हैं । हो कुर्बान जां देश पर, ये शर्त मौत से रखते हैं । सरहद - सरहद, हर पहर नज़र रखते हैं । देशहित सब सह बाधा, हर संकट हरते हैं । मुसीबत में उम्मीदों के जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं । मदद का हाथ बढ़ाते भगवान वर्दी में आ जाते हैं ।
प्राकृतिक , आप्राकृतिक आपदाएं जब विकराल रूप में आती हैं । तकनीकी अभिमानी जन को, उनकी बौनी औकात दिखाती हैं । आधुनिक सब गाड़ी, घोड़े इंटरनेट सब पैसे मोहरे सारी सेवाएं, धरी - धरी रह जाती हैं । ऐसी आफतों में उम्मीदों के, जब रास्ते सारे बंद हो जाते हैं । मदद का हाथ बढ़ाते भगवान वर्दी में आ जाते हैं ।
सीख हार से, लें प्रण जीत का । रही भारत की, रीत यही । रीत - प्रीत से भारत माँ का हर कर्तव्य निभाते हैं । है महबूब वतन बस इनका तिरंगे पर जां लुटाते हैं संकट में जब - जब प्राण जीव के आते हैं मदद का हाथ बढ़ाते भगवान वर्दी में आ जाते हैं ।
दुश्मन के नापाक इरादे कायर हमले जब आहात वतन को करते हैं । प्रेम - प्यार सदभाव याचना जब दुश्मन नहीं समझते हैं । धर रौद्र रूप दुश्मन का काल रण में वीर उतरते हैं । थरथर कांपे रिपु सैन्य सहित प्रतिघात वीर जब करते हैं । संकट के काले बादल जब कहीं कभी मंडराते हैं मदद का हाथ बढ़ाते भगवान वर्दी में आ जाते हैं ।
है आज़ाद, भारत आबाद क्यूंकि हिंद के वीर योद्धा विजयी कहानी भारत की पल - पल लहू से अपने लिखते हैं । बिगड़े हालातों जब जन मुसीबतों में घिर जाते हैं । मदद का हाथ बढ़ाते भगवान वर्दी में आ जाते हैं ।
©अभिषेक भार्गव
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