One of our talented member has shared a poem written by her...
This beautiful poem encapsulates the essence of life very beautifully.
We are proud to share this one her behalf -
ये ज़िंदगी की फितरत
क्यूं रोज़ बदलती है।
हंसती सी कभी लगती
क्यूं पल में बिलखती है।
इंसान की ये सांसे है
रोज़ घट रही है।
जीने की चाह फिर भी
जमकर उमड़ रही है।
ये ज़िन्दगी के मेले
नाबाद यूं चलेंगे
रोके से न रुकेगे
हर रोज ये बढ़ेगे।
जीने की तमन्नाए
नित रंग नए लेंगी
और दर्द से लड़ने के
नए ढंग ये सीखेगी।
दुनिया की रेल यूं ही
चलती रहेगी हरदम
हम हो न हो जहां में
ये ज़िंदगी रहेगी।
By Mrs. Manisha Badkul
Indeed Hm ho na ho jahan me...ye zindagi rahegi...
Thank you for giving us the privilege to share this on your behalf.
We look forward to more such inspiring poetry from you!
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